
अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता हासिल होने से कई देश खुश नजर आ रहे हैं. इन देशों में कई इस्लामिक देश हैं लेकिन इनके अलावा चीन और रूस भी खुश हैं. अगर चीन की ख़ुशी की बात की जाए तो उसके खुश होने का कारण, अफगानिस्तान में मौजूद खरबों डॉलर के अकूत खनिज भंडार हैं. ये दुर्लभ खनिज भण्डार आज तक अनछुए ही रहे हैं. अफगान दूतावास के पूर्व राजनयिक अहमद शाह कटवाजई की मानें तो अफगानिस्तान में मौजूद दुर्लभ कीमती धातुओं का मूल्य वर्तमान में एक हजार अरब डॉलर से तीन हजार अरब डॉलर के बिच लगाई जा सकती है.
अगर देखा जाए तो इन कीमती धातुओं का इस्तमाल, हाई-टेक मिसाईलों की उन्नत तकनीकों में प्रमुख तौर पर किया जाता है. ऐसे में बेशक इस बात में दो राय नहीं की आने वाले समय में तालिबान की मदद से, चीन अपने सामरिक शक्तियों को मजबूत तो करेगा ही, साथ ही वो और भी ज्यादा माला-माल होता हुआ नजर आएगा.
बड़ी मुश्किल से मिलने वाले इन दुर्लभ धातुओं का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के लिए दोबारा चार्ज की जाने वाली बैटरी, आधुनिक सिरामिक के बर्तन, कंप्यूटर, डीवीडी प्लेयर, टरबाइन, वाहनों और तेल रिफाइनरियों में उत्प्रेरक, टीवी, लेजर, फाइबर ऑप्टिक्स, सुपरकंडक्टर्स और ग्लास पॉलिशिंग में भी किया जाता है.
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति करता है. चीन सुरमा (एंटीमनी) और बराइट जैसी दुर्लभ धातुओं और खनिजों की भी आपूर्ति करता है, जो वैश्विक आपूर्ति के लिए मौजूद लगभग दो-तिहाई हिस्सा है. ऐसे में अफगानिस्तान के खनिजों का जखीरा हाथ लग जाने के बाद, चीन का निर्यात काफी बढ़ता हुआ नजर आएगा जो चीन के आर्थिक उन्नति का कारण बनेगा.
गौरतलब हो कि चीन ने 2019 में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के दौरान धातु निर्यात को नियंत्रण में करने की धमकी दी थी. ऐसे में चीन ने अगर धमकी को सच करने की ठानी तो अमेरिकी उच्च तकनीक उद्योग के लिए कच्चे माल की गंभीर कमी हो सकती है.