
तालिबानी भले ही सलवार और कुर्ते की लिबास में, बड़ी-बड़ी दाढ़ियों में दिखें. अनपढ़ और बर्बर शक्ल अख्तियार किये हुए नजर आयें. लेकिन तालिबान की कमांडों फ़ोर्स “बद्री-313” एक अत्याधुनिक कमांडो फ़ोर्स की तरह ही दिखती है. अमेरिकी शक्लो सूरत में दिखने वाली ये कमांडो फ़ोर्स, पूरी तरह प्रशिक्षित है और उसके पास अत्याधुनिक हथियार भी हैं. इस कमांडों फ़ोर्स को शायद काबुल में मुल्ला बरादर के सुरक्षा के लिए लगाया जाएगा.
तालिबान ने राजधानी काबुल की सुरक्षा के लिए नई कमांडो यूनिट का गठन किया है. इस यूनिट का नाम विक्ट्री फोर्स रखा गया है. बताया जा रहा है कि इस यूनिट में हक्कानी नेटवर्क के चुनिंदा खूंखार आतंकियों को रखा गया है. काबुल में तैनात इस आतंकी यूनिट ने कई चौकियां भी स्थापित कर ली हैं. अमेरिकी रायफल एम-4, कमांडो की कैमोफ्लाज ड्रेस और बॉडी ऑर्मर पहने ये आतंकी राजधानी में हम्वी और बाकी कई गाड़ियों में सवार होकर गश्त भी लगा रहे हैं.
बताया जा रहा है कि यह यूनिट सीधे हक्कानी नेटवर्क में नंबर दो “अनस हक्कानी” को रिपोर्ट कर रही है. अनस को हाल में ही काबुल का सुरक्षा प्रमुख नियुक्त किया गया है. यह आतंकी अफगानिस्तान में कई बड़े आतंकी हमलों में सीधे शामिल है. इसी कारण अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार में इसे पकड़ने के बाद फांसी की सजा सुनाई गई थी. 2019 में तालिबान के साथ समझौते के कारण इसे जेल से रिहा कर दिया गया था.
तालिबान के विक्ट्री फोर्स के आतंकी अमेरिकी सेना के नेवी सील की ड्रेस पहने हुए दिखाई दे रहे हैं. सोशल मीडिया में जारी तस्वीरों में ये आतंकी ब्लास्टफ्रूफ चश्मा, सैन्य जूते, बूलेटप्रूफ जैकेट, ग्लव्स, ब्लास्ट हेलमेट और एम-4 जैसे घातक हथियार लिए दिख रहे हैं. कई आतंकियों के हेलमेट में नाइट विजन डिवाइस भी लगी हुई है. माना जा रहा है कि ये सामान उन्हें अफगान सेना से मिला है.
तालिबान की विक्ट्री फोर्स बद्री 313 के बाद दूसरी कमांडो यूनिट है. इस यूनिट के लड़ाके भी अमेरिकी सैनिकों की तरह कैमोफ्लाज जूते, बॉडी आर्मर और कपड़े पहनते हैं. इतना ही नहीं, ये आतंकी हाथ में अमेरिकी एम-4 रायफल लिए हम्वी गाड़ी से गश्त लगाते हैं. तालिबान ने अपने इस कमांडो यूनिट का बद्री 313 नाम बद्र की लड़ाई के नाम पर रखा है. कुरान में बताया गया है कि लगभग 1400 साल पहले पैगंबर मोहम्मद ने 313 लड़ाकों के साथ दुश्मन सेना को सफलतापूर्वक हराया था, इसलिए इस कमांडो फ़ोर्स का नाम “बद्री-313” रखा गया है.
सवाल ये है कि, तालिबान की इस यूनिट ने कहां से अमेरिकी सैनिकों का गियर और हथियार पाया है ? इस सवाल का जवाब अभी तक अज्ञात है. देखने में यह हूबहू अमेरिकी सेना के हार्डवेयर से मेल खाता है. पहले अफगान सेना भी ऐसे ही उपकरणों का इस्तेमाल करती थी, लेकिन बाद में उनसे अमेरिकी और बाकी नाटो फोर्सेज ने वापस ले लिया था. इस सवाल के बाबत अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद करीब 28 बिलियन डॉलर के हथियारों को जब्त किया है. ये हथियार अमेरिका ने 2002 और 2017 के बीच अफगान बलों को दिया था.
सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसीज सिक्योरिटी असिस्टेंस मॉनिटर के डिप्टी डायरेक्टर इलियास यूसुफ का कहना है कि अमेरिकी हथियारों की जब्ती तालिबान के लिए एक प्रचार का मामला है. तालिबान आतंकी अफगान वायु सेना के जहाजों और हेलिकॉप्टरों के साथ तस्वीरें तो ले रहे हैं, लेकिन इनके पास इसे चलाने की ट्रेनिंग नहीं है. उन्होंने कहा कि जब एक सशस्त्र समूह अमेरिकी निर्मित हथियारों पर अपना हाथ रखता है, तो यह एक स्टेटस सिंबल की तरह होता है, यह एक मनोवैज्ञानिक जीत है.
लेकिन इस बात को पूरी तरह से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि क्या एक साजिश के तहत अमरीकी सेना ने अपने हथियार अफगानिस्तान में छोड़ा है ताकि उसका उपयोग तालिबानी कर सकें ? जहाँ तक इलियल युसूफ का कहना है कि वायु सेना के विमान और हेलिकॉप्टर को चलाने की जानकारी, तालिबानियों को नहीं है, तो ये उनका भ्रम ही कहा जाएगा क्योंकि बात चाहे वायु सेना के विमान की हो या फिर हेलिकॉप्टर चलाने की जानकारी की बात हो, इसके लिए अफगानिस्तान के पडोसी पाकिस्तान का सहयोग जरुर मिलेगा, जिसे वो भारत के खिलाफत में इस्तमाल करता हुआ दिखेगा.