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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उठाया सवाल-“दस्ताने पहनकर कोई महिला को छुए तो क्या वह दंडित नहीं होगा ?”

भारत के कुछ न्यायालयों में अतार्किक एवं अव्यवहारिक फैसले ले लिए जाते हैं. ऐसे फैसले से पीड़ित खुद को न्यायविहीन स्थिति में तो पाता ही है, इस देश की जनता भी ऐसे फैसलों के कारण खुद को असहज महसूस करने लगती है. ऐसे फैसले जनता की अदालत में चर्चा-परिचर्चा का मुद्दा बन जाते हैं और न्यायालय की छवि धूमिल होती हुयी नजर आने लगती है, लोगों का विश्वास भी न्यायालयों के ऊपर से उठता हुआ नजर आने लगता है. ऐसी स्थिति में सुप्रीमकोर्ट ही न्याय का केंद्र बिंदु बनता हुआ दिखता है और लोगों की नजर सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर टिक जाती है.

ऐसे ही एक विवादास्पद फैसले की बहस सुप्रीमकोर्ट में चल रही है, जिसमें दिसंबर 2016 की घटना में 39 साल के एक व्यक्ति पर 12 साल की बच्ची का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा था. सत्र न्यायालय ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट की धारा-8 के तहत दोषी मानते हुए 3 साल की सजा सुनाई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने इस साल जनवरी में इस फैसले को पलट दिया था.

फैसला सुनाते हुए जज ने कहा था कि नाबालिग लड़की के शरीर के ऊपरी हिस्से को उसके कपड़ों पर टटोलना पॉक्सो की धारा-आठ के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा। पॉक्सो की धारा-के तहत अपराध मानने के लिए स्किन टू स्किनसंपर्क होना चाहिए. हाईकोर्ट का मानना था कि यह कृत्य आईपीसी की धारा-354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध बनता है.

सुप्रीम कोर्ट बॉम्बे हाईकोर्ट के एक और विवादास्पद फैसले के खिलाफ दायर अपील पर भी विचार कर रहा है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और उसकी पैंट की जिप खोलना पॉक्सो के तहत यौन हमले की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता,

भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कल मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि नाबालिग के यौन उत्पीड़न मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले को पलटा जाए. इस फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की महिला जज ने कहा था कि चूंकि “स्किन टू स्किन” संपर्क नहीं हुआ है, इसलिए पॉक्सो कानून के तहत यौन अपराध की धारा-8 नहीं लगाई जा सकती. धारा-8 के तहत नाबालिग पर यौन हमले का दोषी पाए जाने पर कम से कम 3 साल की सजा होती है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला खतरनाक और अपमानजनक मिसाल है. इस फैसले का मतलब यह होगा कि “जो व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर किसी बच्चे या बच्ची का यौन शोषण करे, उसे बरी कर दिया जाएगा ? अगर कल कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर किसी महिला के पूरे शरीर को स्पर्श करता है तो उसे इस फैसले के आधार पर यौन उत्पीड़न के लिए दंडित नहीं किया जाएगा ? यह अपमानजनक है” 

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह कहना कि ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क होने पर ही उसे यौन अपराध माने जाने के ये मायने हैं कि दस्ताने पहनकर ऐसा कृत्य करने वाले व्यक्ति को बरी कर दिया जाएगा. यह फैसला देने वाली जज ने स्पष्ट रूप से दूरगामी परिणाम नहीं देखे. हाईकोर्ट का निर्णय विधायी मंशा के विपरीत था. अटॉर्नी जनरल ने यह भी बताया कि पिछले एक वर्ष में पॉक्सो के तहत अपराध के 43,000 मामले सामने आए हैं.

सुप्रीम कोर्ट की पीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. 27 जनवरी को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. पीठ ने 6 अगस्त को इस मामले में वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे को न्याय मित्र नियुक्त किया था. अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी.

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