
रूस के दोस्त कहे जाने वाले ताजिकिस्तान ने अफगानिस्तान में बनने वाली तालिबान की सरकार को मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है. ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली राखमोन ने कहा-“उनका देश एक ऐसी अफगान सरकार को मान्यता नहीं देगा जो समावेशी नहीं है. इस सरकार में सभी जातीय समूहों का भी प्रतिनिधित्व नहीं है” उन्होंने तालिबान पर सभी पक्षों को शामिल करने के अपने वादे को पूरा करने में विफल रहने का आरोप लगाया.
रूस के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले ताजिकिस्तान के इस ऐलान को काफी चौंकाने वाला माना जा रहा है. रूस ने पहले ही तालिबान सरकार को मान्यता देने का ऐलान किया हुआ है. रूसी राजदूत ने तो कई बार काबुल में तालिबान के वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं से मुलाकात भी की है. ताजिक राष्ट्रपति इमोमाली राखमोन ने यह बयान पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ हुई बैठक के बाद दिया है. कुरैशी इस समय अफगानिस्तान के हालात को लेकर मध्य एशियाई देशों की यात्रा कर रहे हैं.
राखमोन के कार्यालय ने एक बयान में कहा-“तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि तालिबान देश की अन्य राजनीतिक ताकतों की व्यापक भागीदारी के साथ एक अंतरिम सरकार बनाने के अपने पहले के वादों से मुकर रहे हैं. वे इस्लामिक अमीरात की स्थापना करने जा रहे हैं. ताजिकिस्तान किसी भी अन्य सरकार को मान्यता नहीं देगा जो उस देश में उत्पीड़न के माध्यम से और अफगानिस्तान के सभी लोगों, विशेष रूप से इसके सभी जातीय अल्पसंख्यकों की स्थिति को ध्यान में रखे बिना स्थापित किया जाएगा”
अगर देखा जाए तो अफगानिस्तान में ताजिक समुदाय के लोगों की काफी बड़ी आबादी रहती है. इनकी सबसे बड़ी बसावट तालिबान के सबसे बड़े विरोधी गढ़ पंजशीर में है. तालिबान ने तीन दिन पहले ही पंजशीर को चारों तरफ से घेरा लिया है. तालिबान ने ही अलकायदा के आतंकियों के जरिए पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद की हत्या भी करवाई थी. ऐसे में ताजिकिस्तान अपने जातीय समूहों की सुरक्षा को लेकर तालिबान पर चिढ़ा हुआ है.