
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद, कई ऐसे सवाल उभर रहे हैं जिसके विषय में PM मोदी ने विदेशमंत्री जयशंकर को, सर्वदलीय बैठक बुलाकर स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कहा था. अफगानिस्तान मामले में उभर रहे कई सवालों के सन्दर्भ में, आज गुरुवार को केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय के साथ, विपक्षी दलों के बैठक में जवाब मिलता हुआ दिख सकता है.
आज गुरुवार को होने वाले सर्वदलीय बैठक में, विदेश मंत्री एस जयशंकर राजनीतिक पार्टियों के संसदीय दलों के नेताओं को अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति से अवगत कराएंगे. इस बैठक में विदेश मंत्री के अलावा संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, लोकसभा उपनेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा में नेता सदन और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, उपनेता और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन, मीनाक्षी लेखी और राजकुमार सिंह मौजूद रहेंगे.
विपक्ष की ओर से बैठक में शामिल होने वाले कुछ प्रमुख नेताओं में कांग्रेस से मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी, टीएमसी से प्रोफेसर सौगत रॉय और सुखेंदु शेखर रॉय, समाजवादी पार्टी के प्रोफेसर राम गोपाल यादव, बसपा से सतीश मिश्रा, पूर्व रक्षा मंत्री और राकांपा प्रमुख शरद पवार, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, भाकपा सांसद बिनॉय विश्वम समेत अन्य नेता बैठक में शामिल हो सकते हैं.
केंद्र सरकार की ब्रीफिंग अफगानिस्तान से लोगों की निकासी के अभियान पर केंद्रित रहने की उम्मीद है तथा इसमें वहां के हालात को लेकर सरकार के आकलन की भी जानकारी दी जा सकती है.
संभावना है कि बैठक की शुरुआत विदेश मंत्री के संबोधन से होगी, जिसके बाद भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला के द्वारा प्रजेंटेंशन दिया जाएगा. बैठक खत्म होने से पहले सवाल-जवाब का दौर होगा. बैठक के 90 से 120 मिनट तक चलने की उम्मीद है. केंद्र सरकार सांसदों को भी जमीनी स्थिति और भारत के बचाव कार्यों के बारे में जानकारी देगी. सरकार इस बात पर भी जानकारी दे सकती है कि तालिबान के साथ मौजूदा समय में भारत की क्या स्थिति है.
उम्मीद है की इस सर्वदलीय बैठक में, विपक्ष सरकार से जानना चाहेगा कि अब तक कितने लोगों को वापस लाया गया है और कितने बचे हैं ? साथ ही हिंसाग्रस्त देश से अफगान नागरिकों को वापस लाने के संबंध में भारत का क्या रुख है ? पार्टियां सरकार से यह भी पूछना चाहेंगी कि वे कब तक हालात के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे ? तालिबान सरकार को मान्यता देने या न देने पर भी चर्चा-परिचर्चा की संभावना है.
लेकिन सवाल ये भी है कि क्या ये बैठक स्वस्थ-विचार के माहौल में संपन्न होकर, देशहित से जुड़े सवालों पर ही केन्द्रित रहेगी या पहले की कई बैठकों की तरह हंगामे का शक्ल अख्तियार कर “विरोध की राजनीती” पर केन्द्रित होकर निष्कर्ष-विहीन हो जाएगी ?