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अब पछताए होतु क्या, जब चुगवा दिए पूरा खेत … बाईडेन ने बिगाड़ दिया अमेरिका की साख ?

अमेरिका का अफगानिस्तान से वापस जाने का फैसला आर्थिक आधार पर किया गया फैसला था ? इस सवाल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग तलाश रहे हैं. इसका जवाब क्या है, इसका तो नहीं पता लेकिन अब यह दिखने लगा है कि जो अमेरिका खुद को “सुपर पॉवर” होने का दावा करता था, बाईडेन ने उस अमेरिका की साख पर गच्चा लगाने का काम जरुर किया है. चीन की साजिश और पाकिस्तान की दलाली में, अमेरिका का मूंह काला जरुर होता हुआ दिख रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता सौंपना, तालिबान के हाथों में दिख रहे हिंसा के खंजर के निचे, लाखों अफगानियों की जान को सौंपने जैसा ही दिख रहा है. लेकिन कहते हैं की जब आपके इरादे गलत हों तो गलत फैसले होते हैं और उन गलत फैसलों का सबसे पहला असर, गलत नियत वाले पर ही पड़ता हुआ दिखता है.

आईये फ्लैशबैक में चलते हैं ….. जनवरी 2002 में अफगानिस्‍तान में मौजूद अमेरिकी दूतावास 1989 के बाद पहली बार खुला था. तब के राजदूत रायन क्रॉकर ने कहा था कि काबुल में उनसे मिलने कांग्रेस का जो पहला सदस्‍य पहुंचा, वह तब डेलावेयर के सीनेटर रहे जो बाइडन थे. क्रॉकर को बाइडन से बड़ी उम्‍मीदें थीं, मगर अफगानिस्‍तान में अब जो कुछ भी हो रहा है, उससे बाइडन को लेकर उनकी राय बदल गई है. अगर देखा जाए तो अपनी राय बदलने वाले वो अकेले नहीं हैं, आज पूरी दुनिया, अफगानिस्तान मामले में बाईडेन के द्वारा लिए गए फैसले की जल्दबाजी के लिए बाईडेन को दोषी मान रहे हैं.

डोनाल्‍ड ट्रंप के बाद जनवरी 2021 में राष्‍ट्रपति बने बाइडन ने सेना वापस बुलाने में जो जल्‍दबाजी दिखाई है, आज उसपर जरूर उन्‍हें पछतावा हो रहे होंगे. एक आतंकी घटना में, बिना किसी संघर्ष के 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए हैं, यह अमेरिका के लिए बहुत बड़ी बात है.

नायक के बदले भगोड़ा साबित हुए बाईडेन

अगर सोशल मिडिया की बात करें तो अमेरिकी सोशल मीडिया में बाइडन किसी विलन की तरह उभर रहे हैं. खुद अमेरिकी लोग ही बाईडेन के फैसले को मानवाधिकार के विरुद्ध और अदूरदर्शी करार देते हुए कह रहे हैं कि बाईडेन के फैसले ने, अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भगोड़ा और कमजोर साबित किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन, अफगानिस्तान वाले फैसले से, खुद को तुरंत-फुरंत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का नायक साबित करना चाहते थे लेकिन भगोड़ा साबित हो रहे हैं.

फिर चुहिया की चुहिया

समय का पहिया फिर उसी जगह पर पहुंच गया लगता है. 2001 में अमेरिका इसलिए अफगानिस्‍तान गया था ताकि आतंकवादियों का सफाया कर सके. 20 साल बाद अमेरिका वहां से बोरिया-बिस्‍तर बांधकर निकल रहा है तो आतंकियों की पकड़ और मजबूत हो चुकी है. अमेरिकी सैनिकों की एक पूरी पीढ़ी अफगानिस्‍तान में खप गई. एक ट्रिलियन डॉलर से ज्‍यादा खर्च हो गए और अब जैसी तस्‍वीरें आ रही हैं, वो बाइडन प्रशासन के लिए शर्मिंदगी भरी हैं.

अपने घर में घिर गए हैं बाइडन

बाइडन जब राष्‍ट्रपति की कुर्सी पर बैठे तो अमेरिकी मीडिया का एक बड़ा धड़ा उनके पीछे था. काबुल एयरपोर्ट पर हमले के दिन को अमेरिकी मीडिया ने बाइडन के राष्‍ट्रपति शासन का सबसे बुरा दिन करार दिया है. ‘Wall Street Journal’ में छपा एक ऑप-एड कहता है कि बाइडन की विदेश नीति को रीप्‍लेस करने की जरूरत है. ‘The Hill’ पूछता है कि अफगानिस्‍तान डिजास्‍टर के बाद सवाल उठते हैं कि बाइडन की रेड लाइन कहां है ? बाइडन कह चुके हैं कि उन्हें अपने फैसले पर पछतावा नहीं है, मगर काबुल हमले में मारे गए 13 अमेरिकी कमांडो की मौत के बाद, शायद मन ही मन वे सोच जरूर रहे होंगे कि कहीं उनका यह जुआ उनके सियासी भविष्य के लिए भारी न पड़ जाए.

बाईडेन के राजनैतिक भविष्य पर खतरा ?

काबुल हमले के बाद बाइडन ने वादा किया कि अमेरिका आतंकियों पर पलटवार जरूर करेगा. मगर बाइडन की बातों और एक सुपरपावर के कदम पीछे हटाने के बीच जो खाई है, उसे पाटने में वाइट हाउस भी नाकाम हो रहा है. अगर अमेरिका के सियासी इतिहास की बात करें तो बाइडन का यह फैसला पूर्व राष्‍ट्रपति जिम्‍मी कार्टर की याद दिलाता है. कार्टर के 1980 ईरान बंधक बचाव अभियान को उनके प्रशासन के ताबूत में आखिरी कील समझा जाता है. जहां कार्टर के साथ ईरान वाला किस्‍सा चुनाव से ठीक पहले हुआ था, बाइडन को राष्‍ट्रपति बने अभी 7 महीने ही हुए हैं और अफगानिस्तान मामले में उनका भगोड़ापन, उनका अदूरदर्शी फैसला और काबुल में आतंकी हमले के दौरान 13 अमेरिकी कमांडो की मौत, ये मामले भी बाईडेन के सियासी भविष्य को अन्धकारमय कर सकते हैं.

हालांकि कार्टर को हराने वाले रोनाल्‍ड रीगन भी एक समय बेरूत में अमेरिकी मरीन्‍स पर हुए एक आत्‍मघाती हमले से, खुद को राजनीतिक रूप से उबारने और उभारने में सफल रहे थे. लेकिन तब के अमेरिका और अब के अमेरिका में काफी अंतर है. वो डोनाल्‍ड ट्रंप जिन्‍होंने 2020 में हुए दोहा शांति समझौता के तहत तालिबान के साथ डील की, अब वही ट्रंप, बाइडन को ‘असफल’ करार दे रहे हैं. गुरुवार को जब बाइडन मीडिया के सामने थे, तो इस तथ्‍य से किनारा कर पाना मुश्किल था कि इस पूरे घटनाक्रम के जिम्‍मेदार वही हैं. मिडिया के कड़क सवालों के बिच जो बाईडेन पूरी तरह से घिरते और निरुत्तरित ही दिखे.

अगर अफगानिस्तान मामले में बाईडेन के जल्दबाज निर्णय की बात करें तो  बाइडन शायद यह समझ नहीं सके या उनके सलाहकार इस बात को भांप नहीं सके कि अफगानिस्‍तान और इराक में बड़ा अंतर है. अगर देखा जाए तो मुद्दा अमेरिका के अफगानिस्‍तान में रहने या न रहने का नहीं है बल्कि जिस तरह से, अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई हो रही है, मुद्दा उसका है.

बाईडेन के जल्दबाज फैसले और अमेरिकी कमांडो की मौत से, अगर बहुत लोगों को साइगोन (1975) की याद आ रही है तो ये याद आना लाज़मी है. अमेरिका इस पूरे प्रकरण को कहीं बेहतर ढंग से हैंडल कर सकता था लेकिन बाईडेन की जल्दबाजी ने सब गुड़ गोबर कर दिया.

आतंकियों के चौघड़िया में फंसे बाईडेन ?

अगर तालिबान की बात करें तो तालिबान आज काबुल एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमले की निंदा कर रहा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या तालिबान का यह बयान वाकई अमेरिका को मिले इन ताजे घावों पर मरहम लगा पाएगा ? बाइडन को अब तक तो यह हकीकत बिल्कुल साफ ही नजर आ रही होगी कि पाक की खुफिया एजेंसी ISI हो, अलकायदा हो या फिर तालिबान, सभी की जड़ें एक ही जगह मौजूद हैं. ऐसे में बाइडन अगर हमलावरों को चुन-चुन कर मारने की बात कर रहे हैं, तो फिर वह निशाना किसे बनाएंगे ? ISIS को, ISI, अलकायदा को या फिर तालिबान को ? ये चारों तो एक ही चौघड़िया के अलग-अलग रूप हैं. अगर देखा जाए तो आतंक के इस चौघड़िया में बाईडेन बुरी तरह से फंसते हुए नजर आ रहे हैं.

आतंकवाद के वैश्विक लड़ाई में बाईडेन रहे असफल ?

संभव है कि अमेरिकी फौज अगले हफ्ते की शुरुआत तक अफगानिस्‍तान से बाहर जा चुकी होगी. आगे जो भी हो, इतना तय है कि बाइडन के राजनैतिक  विरोधी उन्‍हें अपने वक्‍त का कार्टर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. अमेरिका और दुनिया यह भयावह दौर अपनी आखों से देख रही है, बाईडेन के लिए उन्‍हें मनाना इतना आसान भी नहीं होगा. बाइडन भले ही यह दावा करें कि आतंक के खिलाफ अमेरिका की वैश्विक लड़ाई खत्‍म हो चुकी है, मगर काबुल में ISIS का हमला और 13 अमेरिकी कमांडो की मौत, बाईडेन के खोखले दावे की पोल खोलता हुआ नजर आ रहा है. मतलब साफ़ है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में, अमेरिकी राजनीती में, वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ प्रयासों में, अब बाइडन की स्‍क्रूटनी, और सख्‍ती से होगी.

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