
News Express24 ने अपने खबरों के माध्यम से कई बार इस बात को उल्लेखित किया है की आने वाले समय में भारत के छोटे-छोटे पड़ोसी देश ही, चीन की बड़ी-बड़ी लालच में आकर, भारत के दुश्मन साबित होते हुए दिखेंगे. इस मामले में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलावा, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के बारे में विशेष रूप से संभावनाओं एवं शंकाओं को खबर के मार्फत व्यक्त किया गया.
अफगानिस्तान में तालिबान को काबिज कराने के बाद, चीन अब भारत के खिलाफ अंदरूनी तौर पर ज्यादा आक्रामक होता हुआ दिख रहा है. उसकी चालबाजियों ने तेज रफ़्तार पकड़ ली है. फिलवक्त स्थिति ये है कि भारत को चीन से किसी एक जगह ही या किसी एक सीमा पर ही सतर्क रहने की जरूरत नहीं है. चीन की विस्तारवादी नीति से कई देश परेशान हैं और उनमें से एक भारत भी है. चीन अब श्रीलंका में भी तेजी से पैर पसार रहा है. भारत के लिए यह चिंता की बात है. चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि चीन अब वहां तमिलों को लुभाने का भी प्रयास कर रहा है.
श्रीलंका में बढ़ता हुआ नजर आ रहा है चीन का दखल
चीन की परियोजनाओं की आड़ में उत्तरी श्रीलंका में चीन का विस्तार का होना, भारत के लिए खतरे का संकेत है. चीन जो पहले से ही श्रीलंका में अपनी गहरी रणनीतिक पैठ बना चुका है, अब भारतीय तट के करीब अपनी उपस्थिति मजबूत करने की दिशा में जुट गया है. चीन की इस रणनीति को देखते हुए भारत को सजग रहने की जरूरत है क्योंकि भारतीय तट के करीब मौजूदगी के साथ ही साथ, चीन के द्वारा तमिलों को भी लुभाने की कोशिश तेजी से की जा रही है.
चीन जिस प्रकार से श्रीलंका के उत्तरी प्रांत में बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है, उसका फायदा उसकी ओर से बाद में, भारत के खिलाफ उठाया जा सकता है. निश्चित रूप से यह भारत के लिए चिंता का विषय है. अगर देखा जाये तो इससे पहले, चीनी परियोजनाएं काफी हद तक दक्षिणी श्रीलंका तक ही सीमित थीं.
चीन की ओर बढ़ता जा रहा है श्रीलंका का झुकाव
चीन के लालच और झांसे में आकर, श्रीलंका का झुकाव भी चीन की तरफ बढ़ता हुआ नजर आ रहा है. गोटाबया राजपक्षे सरकार अब उत्तरी श्रीलंका में भी चीनी उद्यमियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है. भारत इस साल फरवरी में जाफना प्रायद्वीप के तीन द्वीपों में, चीनी सिनोसार-एटेकविन संयुक्त उद्यम को 12 मिलियन डॉलर की हाइब्रिड पवन और सौर ऊर्जा परियोजना देने के श्रीलंका के फैसले का पहले ही विरोध कर चुका है.
तमिलनाडु तट से बमुश्किल 50 किमी की दुरी पर, टापू होने के कारण, भारत ने इन परियोजनाओं को लेकर विरोध भी किया है. एक अन्य चीनी संयुक्त उद्यम को स्थानीय किसानों के विरोध के बावजूद उत्तरी श्रीलंका के एक तटीय गांव में भूमि आवंटित की गई है. इस क्षेत्र में इस तरह के कई अतिक्रमण लगातार देखे जा रहे हैं.
कई अन्य देशों पर भी है चीन की नजर
भारत अब श्रीलंका और चीन के कदम से परेशान है. भारत, जापान और श्रीलंका के साथ कोलंबो बंदरगाह पर पूर्वी कंटेनर टर्मिनल को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए त्रिपक्षीय समझौते से श्रीलंका वापस हट गया. फिर त्रिंकोमाली में तेल टैंक फार्म परियोजना को लेकर भी मतभेद हैं. वहीं चीन दूसरी ओर श्रीलंका में अपने पांव तेजी से पसार रहा है. चीन न केवल श्रीलंका में ही बल्कि मॉरीशस, मालदीव, बांग्लादेश, म्यांमार के साथ संबंध बनाकर, पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में व्यवस्थित रूप से अपने पंख फैला रहा है.
चीन की हरकतों के बारे में सावधान रहे भारत
अब ऐसी खतरनाक स्थिति में भारत के लिए जरुरी होता दिख रहा है कि वो चीन की विस्तारवादी निति को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी आपत्ति को मजबूती से व्यक्त करे. कई ऐसे देश हैं जो चीन के नियत और निति के खिलाफ हैं. ऐसे देशों को एकजुट करने की जरूरत है. साथ ही भारत के लिए यह जरुरी है की अब अपने पड़ोसी देशों के प्रति उदारवादी निति का परित्याग कर, वहां किसी भी तरह के उपक्रम में निवेश करना बंद करे और आर्थिक सहायता देना बंद करे. भारत ने भूकम्प के दौरान नेपाल को आर्थिक सहायता प्रदान की. श्रीलंका में भी कई उपक्रम में निवेश की योजना बनायी. बांग्लादेश में भी भारत ने काफी उदारता दिखाई है. भारत के सामने अफगानिस्तान एक ताजा उदाहरण है, जहां अमेरिका और भारत ने काफी पैसे खर्च किये, लेकिन नतीजा वही रहा “ढाक के तीन पात”, आज वहाँ तालिबानी कब्ज़ा है और खर्च किये गए पैसे कूड़ा हो चुके हैं. इसलिए भारत के लिए यह जरुरी है की वो अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर समीक्षा करे. चीन के अवैध विस्तारवादी निति से कैसे निबटा जाए, इस बात को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी आपत्ति को मजबूती के साथ दर्ज करे. चीन के खिलाफत वाले देशों को अपने पक्ष में एकजुट करे क्योंकि आने वाला समय भारत के लिए धीरे-धीरे खतरनाक साबित होता दिख रहा है.