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पंजशीर मामले में UNSC और UNHRC की चुप्पी से, नजीबुल्लाह की तरह ही हो सकता है सालेह का निर्मम अंत

अफगानिस्तान का पंजशीर अब तालिबानियों और तालिबान विद्रोहियों के जंग का मैदान बन चूका है. तालिबान का दावा है की उसने पंजशीर पर पकड़ बना ली है, वहीँ अमरुल्लाह सालेह का दावा है की 600 से भी ज्यादा तालिबानियों को मौत के घाट उतार दिया गया है और करीब 1 हजार से भी ज्यादा तालिबानी हमारे कब्जे में हैं. दावे चाहे जिस पक्ष के तरफ से पेश किये जा रहे हों, उन दावों का न कोई साक्ष्य है और न ही प्रमाण है. लेकिन जो हालात हैं, उसके मद्देनजर यह तो जरुर कहा जा सकता है कि अगर समय रहते UNSC और UNHRC ने इस मामले में कार्यवाही नहीं की तो संभव है की ढाई लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी बर्बाद होने के कगार पर पहुँच जाए. सालेह ने संयुक्त राष्ट्र से पत्र लिखकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की मांग की है और ‘नरसंहार’ की आशंका जताई है.

अफगानिस्तान का पंजशीर प्रांत अब महज एक भू-भाग नहीं रह गया है. पंजशीर के तालिबान विद्रोहियों की उम्मीद है जिन्हें लगता है कि बदलाव की शुरुआत इसी प्रांत से होगी. पंजशीर में फिलहाल तालिबान और एनआरएफ (National Resistance Front of Afghanistan) के बीच संघर्ष जारी है. इस मोर्चे का नेतृत्व अहमद मसूद कर रहे हैं और अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी इसका हिस्सा हैं. विद्रोही बलों का दावा है कि उन्होंने तालिबान के 600 लड़ाकों को मार दिया है और करीब 1000 आतंकी सरेंडर कर चुके हैं. वहीं तालिबान सात में से चार जिलों पर कब्जे का दावा कर रहा है. तालिबान के साथ अब पाकिस्तान जैसी बाहरी ताकतें भी जुड़ रही हैं. वहीं सालेह ने संयुक्त राष्ट्र से पत्र लिखकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की मांग की है और ‘नरसंहार’ की आशंका जताई है.

यह पत्र इस बात का सबूत है कि घाटी में हालात किस हद तक भयावह हो चुके हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सालेह और मसूद की सेना कब तक तालिबान के आगे टिक पाएगी ? अमरुल्लाह सालेह ने संयुक्त राष्ट्र को पंजशीर में ‘मानवीय संकट’ पत्र लिखकर तालिबान को रोकने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से तुंरत अपने संसाधन जुटाने की अपील की है. पत्र में उन्होंने लिखा है कि “काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद पंजशीर पहुंची स्थानीय महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों सहित करीब 2,50,000 लोग घाटियों में फंस गए हैं. ये लोग अमानवीय संकटों और मौजूदा हालातों से जूझ रहे हैं. अगर इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया तो बड़े पैमाने पर मानवीय तबाही देखने को मिलेगी जिसमें मानव अधिकारों के हनन से लेकर भुखमरी, सामूहिक हत्याएं, बलात्कार और नरसंहार शामिल हो सकते हैं.”

सालेह ने मदद की मांग करते हुए लिखा है कि “दो दशकों से जारी संघर्ष, लगातार प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों के प्रकोप, कोविड-19 और फिर तालिबान की वापसी ने देश के सामने दुनिया का सबसे खराब मानवीय संकट खड़ा कर दिया है. हम संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पंजशीर प्रांत में तालिबान के हमले को रोकने के लिए हर संभव कोशिश करने की अपील करते हैं.” यह पत्र अंतर्राष्ट्रीय मदद पर सालेह की निर्भरता को दिखाता है, इस बात का संकेत है कि वह लगातार इस लड़ाई में कमजोर पड़ रहे हैं. वैसे देखा जाए तो केवल UNSC और UNHRC ही नहीं बल्कि दुनिया के वो देश जो तालिबान के विरोधी हैं, वो भी पंजशीर को तालिबानियों के कब्जे से बचाते हुए नजर नहीं आ रहे हैं.

अमरुल्लाह सालेह ने ऐलान कर दिया है की अगर तालिबान ने पंजशीर को अपने कब्जे में किया तो उससे पहले वो शहीद हो जाना पसंद करेंगे. जानकारी मिली है की सालेह के एक मित्र ने सालेह के लिए हेलिकॉप्टर की मदद भेजी थी ताकि वो पंजशीर से निकल भागें. लेकिन सालेह ने मना कर दिया. उन्होंने कहा कि “बलिदान के बिना देशभक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है”

सालेह को पंजशीर में ‘नरसंहार’ का डर सता रहा है. अगर तालिबान घाटी में कामयाब हो जाता है तो खतरा सालेह के लिए भी पैदा हो जाएगा क्योंकि देश के नेताओं के साथ तालिबान का इतिहास बहुत अच्छा नहीं है. इससे पहले अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की तालिबान ने 27 सितंबर 1996 को बर्बर तरीके हत्या कर दी थी. उन्हें बुरी तरह पीटा गया, उनके गुप्तांगों को काट दिया गया फिर सिर में गोली मारकर क्रेन से लटकाया गया. बाद में उन्हें राजमहल के पास एक लैंप पोस्ट से लटका दिया गया था. ऐसे में इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि तालिबान आने वाले समय में सालेह के लिए निजी रूप से बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है.

अगर देखा जाये तो पंजशीर के मामले में तालिबानी और हक्कानी गुट के बिच  विचारों में विभेद दिख रहा था. लेकिन कल शनिवार को अचानक तालिबान के बुलावे पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ काबुल पहुंचे थे और यहीं से पंजशीर की तस्वीर बदलना शुरू हुई.

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