
वर्ष 2018 को दिल्ली में हुआ बुराड़ी कांड दिल्ली पुलिस के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण केसेज में से एक साबित हुआ. एक ऐसा केस जिसमें किसी बात का लॉजिक समझ नहीं आ रहा था. नतीजा इतनी कॉन्स्पिरेसी थ्योरी बनीं कि काला जादू से लेकर टोने-टोटके को मर्डर मिस्ट्री की वजह बताया जाने लगा. आखिरकार दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत के मामले को बंद कर दिया है. पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा है कि किसी तरह की गड़बड़ी के सबूत नहीं मिले हैं। दिल्ली पुलिस के अनुसार, मौतें किसी ‘स्यूसाइड पैक्ट’ का नतीजा लगीं.
पुलिस ने हत्या का केस दर्ज किया था, मगर तीन साल तक लंबी जांच के बाद निष्कर्ष निकाला कि यह ‘स्यूसाइड पैक्ट’ का केस था. पुलिस ने 11 जून को अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है। अदालत नवंबर में अगली सुनवाई में मामले को देखेगी.
1 जुलाई 2018 की सुबह एक परिवार के 11 सदस्यों के शव बरामद किए गए थे. नारायण देवी का शव फर्श पर मिला जबकि बाकी सबके शव एक लोहे की ग्रिल से लटके मिले थे. उनकी आंखों पर पट्टी थी और हाथ-पैर भी बंधे हुए थे. देवी के अलावा मृतकों में उनके बेटे भवनेश चुंडावत और ललित चुंडावत, बेटी प्रतिभा; भवनेश की बीवी सविता और उनके बच्चे नीतू, मोनू और ध्रुव; ललित की पत्नी टीना और बेटा शिवम तथा प्रतिभा की बेटी प्रियंका शामिल थे.
पुलिस को घर के भीतर से डायरी मिली जिसमें वह पूरी प्रक्रिया लिखी हुई थी जिसके तहत परिवार को फांसी लगानी थी. डायरी में जो कुछ लिखा था, पुलिस को उसी हालात में शव मिले. अगस्त 2019 में, हैंडराइटिंग एनालिसिस ने साबित कर दिया कि डायरी में घरवालों ने ही लिखा था. कई और सबूतों ने यही जाहिर किया कि मौत एक ‘स्यूसाइड पैक्ट’ की वजह से थी. एक सूत्र के अनुसार-“परिवार के लोगों ने मोबाइल फोन साइलेंट कर दिए और फिर एक बैग में भरकर घर के मंदिर में रख दिए. डायरी की एंट्रियों और उनकी फांसी के तरीकों से भी यही लगा कि वे कोई अनुष्ठान कर रहे थे” हैंडराइटिंग एनालिसिस से पता चला कि ज्यादातर एंट्रीज प्रियंका और ललित की थीं” सीसीटीवी फुटेज में घटना के दिन घरवालों के अलावा किसी और को आते-जाते नहीं देखा गया.”
साइकोलॉजिकल अटॉप्सी से खुलासा हुआ कि इन 11 लोगों ने मौत के इरादे से ऐसा नहीं किया था. अनुष्ठान पूरा होने पर वह सामान्य जिंदगी में लौटने की उम्मीद जताई थी. विसरा रिपोर्ट में जहर की आशंका निर्मूल साबित हुई. डायरी से लगता है कि ललित को इस बात का पूरा यकीन था कि 2007 में गुजर चुके उसके पिता भोपाल सिंह उससे बात कर रहे थे और कुछ अनुष्ठान करने को कह रहे थे जिससे पूरे परिवार को फायदा होगा.
अगर देखा जाए तो अंधविश्वास ने इस खुशहाल परिवार को मौत के घाट पर उतार दिया. यह घटना आज भी ह्रदय-विदारक दृश्य को आँखों के सामने सजीव कर देती है. अन्धविश्वास के कारण इतनी जिंदगियों का काल के गाल के समा जाना, दुखद तो रहा ही.