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दुष्यंत चौटाला ने खेल दिया खेल ? अखिलेश के चच्चा शिवपाल का मंसूबा हुआ फेल

सपा से अलग होने के बाद, अखिलेश यादव के चच्चा हुजुर शिवपाल यादव ने प्रसपा नाम की अलग पार्टी बनाया और चुनाव चिन्ह “चाभी” पर 2022 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया … वर्ष 2019 में अलग पार्टी बनाने के बाद ही शिवपाल यादव ने चुनावी अखाड़े में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए बैनर/पोस्टर पर “2022 में प्रसपा है तैयार” भी छपवा दिया और लगे अखिलेश यादव को चुनौती देने.

जब अपनी अलग पार्टी और चुनाव चिन्ह के गुमान में शिवपाल टेढ़े हुए जा रहे थे, तब उधर हरियाणा में जजपा सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला, 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले अपने पार्टी के चुनाव चिन्ह “चप्पल” को बदलकर “चाभी” किये जाने की कवायद चुनाव आयोग में जारी रखे हुए थे.

अब देखीये किस्मत का खेल … जानिये कि किस तरह शिवपाल की किस्मत ने “लौट कर बुद्धू घर को आये” वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया ….. 15 मार्च 2019 को दुष्यंत चौटाला को चुनाव आयोग ने “चाभी” चुनाव चिन्ह दे दिया और 2022 में प्रसपा का मंसूबा जो पहला विधानसभा लड़ने का था, वो फेल हो गया क्योंकि चुनाव आयोग ने बिना चुनाव चिन्ह के चुनाव चिन्ह न लड़ने पर प्रसपा को रोक दिया.

अब शिवपाल यादव के पास अखिलेश यादव के शरण में जाकर चुनाव लड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा तो शिवपाल यादव ने मिडिया में सपा के प्रति अपने नरम मिजाज वाले बयान देने शुरू कर दिए … शिवपाल के इस नरम रुख को अखिलेश खेमे के बुजुर्गवार और अनुभवी नेताओं ने भी फायदा उठाने का सोच लिया क्योंकि प्रसपा-सपा के गठबंधन से भले ही यूपी में सपा की सरकार बने या न बने. लेकिन इस गठबंधन से एक फायदा होता हुआ दिख रहा था कि वो कार्यकर्त्ता और छुट-भैय्ये नेता जो शिवपाल यादव के साथ सपा को छोड़कर प्रसपा में चले गए थे, वो अब फिर से सपा में आते हुए दिख सकते हैं …. इसलिए अखिलेश यादव ने, शिवपाल के द्वारा गठबंधन के अनुरोध को स्वीकार कर लिया.

अब सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी प्रसपा, चूँकि प्रसपा का चुनाव चिन्ह नहीं है तो मजबूरन इनके उम्मीदवारों को सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना होगा और दोनों पार्टियों के गठबंधन के शर्तों पर टिकट का बंटवारा भी होता हुआ दिखेगा. ऐसे में प्रसपा के उम्मीदवार भी सपा के उम्मीदवार के रूप में ही चुनाव लड़ेंगे.

ये गठबंधन और सटाव-लगाव, प्रसपा के लिए खतरनाक साबित होता हुआ दिखेगा क्योंकि प्रसपा के कार्यकर्त्ता और नेता, अब तक इतना तो समझ ही चुके हैं कि सपा को छोड़कर प्रसपा में उनका आना “गलत निर्णय” था क्योंकि प्रसपा ने अब तक प्रदेश में पुरे दम-ख़म के साथ अपनी पहचान नहीं बना पायी है. ऐसी स्थिति में सपा जैसी बड़ी पार्टी और यूपी में सरकार बनाने के करीब दिखती हुयी पार्टी में वापसी से प्रसपा के उम्मीदवारों और नेताओं को लाभ भी मिलने की उम्मीद बन रही है. ऐसी स्थिति में अगर प्रसपा का विलय पूरी तरह से सपा में हो जाता है तो एक तरह से प्रसपा का अस्तित्व ही रसातल में जाता हुआ दिखता है. ऐसी स्थिति में शिवपाल यादव को मजबूरन, अखिलेश यादव के शरण में रहना होगा और उनकी चाकरी करनी पड़ेगी.

सपा-प्रसपा गठबंधन से, प्रसपा तो अस्तित्व-विहीन होती दिख ही रही है लेकिन शिवपाल चाहेंगे कि वो अपने बेटे आदित्य यादव को अपनी पुरानी सिट जसवंत नगर से टिकट दिलवाएं. इस सीट से शिवपाल ने लगातार जीत हासिल की है. वर्ष 1996 से लगातार जसवंत नगर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते चले आ रहे हैं. इसलिए इस सिट से आदित्य यादव का जितना लगभग तय ही माना जाएगा.

लेकिन सवाल ये भी उठता है कि जसवंत नगर की सीट को, अपने बेटे को देने के बाद शिवपाल यादव कहाँ से चुनाव लड़ेंगे ? इस सवाल का जवाब, तो आने वाले समय में ही मिल पायेगा की अखिलेश यादव उन्हें किस सिट से चुनाव लड़ाते हैं. वैसे एक बात तो तय है की शिवपाल यादव, यूपी के लोकप्रिय एवं कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं. इन्हें अगर कन्नौज, इटावा, बदायूं, एटा, आजमगढ़, गोरखपुर या सिद्धार्थनगर से टिकट मिलता है तो ये अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार को मात देते हुए दिख सकते हैं.

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